वोल्टीय सेल क्या है ? क्रियाविधि | दोष

वोल्टीय सेल
आज के इस टॉपिक में हम वोल्टीय सेल के बारे में समझेंगे जिसमे हम देखेंगे की वोल्टीय सेल क्या होता है इसे किस प्रकार बनाया जाता है अर्थात इसकी संरचना किस प्रकार की होती है और इसकी कार्यविधि किस प्रकार होती है साथ ही साथ हम यह भी देखेंगे की इस वोल्टीय सेल में किस प्रकार के दोष होते है | इन सभी बातों को हम विस्तार पूर्वक समझेंगे तो चलिए शुरुआत करते है वोल्टीय सेल के बारे में समझना |
वोल्टीय सेल की खोज इटली के एक वैज्ञानिक वोल्टा द्वारा की गई थी और उनके नाम के आधार पर ही इस सेल को वोल्टीय सेल कहा जाता है | अगर इसकी संरचना की बात की जाए तो इसमें एक तांबे की छड होती है एक जस्ते की छड होती है इन दोनों छड़ों को इलेक्ट्रोड कहा जाता है और एक कांच का बर्तन होता है जिसमे सल्फ्यूरिक अम्ल भरा होता है | यह सल्फ्यूरिक अम्ल तनु सल्फ्यूरिक अम्ल होता है | इस प्रकार इसकी संरचना होती है | अब हम समझतें है इसकी क्रियाविधि के बारे में |
वोल्टीय सेल की क्रियाविधि
अगर हम वोल्टीय सेल की क्रियाविधि के बारे में बात करे तो इसमें एक कांच के बर्तन में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल ( Dilute H2SO4 ) भरा रहता है जिसे विद्युत अपघट्य कहा जाता है और इस तनु सल्फ्यूरिक अम्ल विद्युत अपघट्य में दो छड़े डुबो देते है जिनमे से एक छड तांबे की होती है और दूसरी छड जस्ते की होती है |
तांबे की छड को ऐनोड कहते है तथा जस्ते की छड को कैथोड कहते है | जब ऐनोड तथा कैथोड दोनों इलेक्ट्रोड को विद्युत अपघट्य में डुबाया जाता है तो इन इलेक्ट्रोड तथा विद्युत अपघट्य के बिच रासायनिक अभिक्रिया होती है और इस रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप इलेक्ट्रान उत्पन्न होते है |
ये इलेक्ट्रान ऐनोड तथा कैथोड यानि की तांबे की छड तथा जस्ते की छड को मिलाने वाले चालक तार में प्रवाहित होने लगते है और इन इलेक्ट्रान का Movement कैथोड से ऐनोड की और होता है अर्थात इलेक्ट्रान का Movement जस्ते की छड से तांबे की छड की और होता है |
और इस प्रकार दोनों छड़ो के बिच विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है जिससे Circuit में धारा का प्रवाह ऐनोड से कैथोड की और होने लगता है अर्थात धारा का प्रवाह तांबे की छड से जस्ते की छड की और होने लगता है | इस प्रकार विद्युत सेल की क्रियाविधि होती है और इसमें धारा प्रवाहित होती है |
वोल्टीय सेल के दोष
वोल्टीय सेल के कुछ दोष भी होते है जो की इस प्रकार होते है –
1 . इसके दोष में पहला दोष तो यह है की इससे लगातार अधिक समय तक धारा प्राप्त नहीं की जा सकती है |
2 . इसका एक दोष यह भी है की इसको एक स्थान से दुसरे स्थान तक लाना – ले जाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इसके अन्दर द्रव पदार्थ भरा होता है जिसके कारण मुश्किल होती है |
3 . इसका एक दोष यह भी होता है की इसमें जस्ते की छड पर कुछ अशुद्धियाँ जैसे की लोहा, कार्बन, सीसा आदि सदेव उपस्थित रहती है और जैसे – जैसे जस्ता सेल के विद्युत अपघट्य में घुलता जाता है ये अशुद्धियाँ विद्युत अपघट्य में उपस्थित इलेक्ट्रोड पर जमने लगती है और ये धनात्मक इलेक्ट्रोड की भांति व्यवहार करने लगती है |
और इस प्रकार सेल का विद्युत अपघट्य पदार्थ , जस्ते की छड तथा उसमें उपस्थित अशुद्धियों के बिच स्थानीय सेल बन जाते है और जिसका परिणाम यह होगा की अगर सेल से बाहर धारा नहीं ली जा रही है फिर भी इसमें धारा प्रवाहित होती रहती है जिससे जस्ता व्यर्थ ही घूमता रहता है |
लेकिन अगर इस प्रकार की समस्या से सेल को बचाना है तो उसके लिए दो तरीके है की या तो अशुद्ध जस्ते की जगह पर शुद्ध जस्ते का उपयोग किया जाए या फिर इसका एक और तरीका है की अशुद्ध जस्ते की छड पर पारे का लेप कर दिया जिससे शुद्ध जस्ता पारे में घुलकर बाहर आ जाएगा और अशुद्धियाँ पारे में अघुलनशील होने के कारण ये सारी अशुद्धियाँ अंदर ही रह जाएगी |
और इस प्रकार ये अशुद्धियाँ जो की जस्ते की छड में उपस्थित है वे विद्युत अपघट्य पदार्थ के संपर्क में नहीं आ पाएगी और सेल के अन्दर होने वाली स्थानीय क्रिया रुक जाएगी अर्थात सेल स्थानीय सेल नहीं बन पाएगा |
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