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वान – डी ग्राफ जनरेटर क्या होता है ? इसका सिद्धांत | कार्यविधि | उपयोग

March 23, 2021 by Er. Mahendra Leave a Comment

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वान – डी ग्राफ जनरेटर क्या होता है ? इसका सिद्धांत | कार्यविधि | उपयोग

वान – डी ग्राफ जनरेटर क्या होता है ? इसका सिद्धांत | कार्यविधि | उपयोग

वान – डी ग्राफ जनरेटर

आज किस इस टॉपिक में एक ऐसे डिवाइस के बारे में पड़ने जा रहे है जिसका उपयोग फिजिक्स वर्ल्ड में बहुत ज्यादा किया जाता है | जो है वान – डी ग्राफ जनरेटर जब भी कही पर उच्च विभवान्तर जनरेट करने की जरुरत पड़ती है तो इस डिवाइस का उपयोग किया जाता है | इसका  नाम है वान – डी ग्राफ जनरेटर तो आज हम इसी के बारे में पड़ेंगे की यह क्या होता है | किस प्रकार इसको बनाया जाता है | इसकी कार्यविधि क्या होती है तथा इसका किस प्रकार इसका उपयोग कहा कहा पर किया जाता है | इन सभी बातो को हम एक एक करके समझेंगे | तो सबसे पहले हम यह जानते है की ये क्या होता है किस प्रकार बना होता है – 

सन 1931 में अमेरिका के  वान – डी ग्राफ नाम के  एक वैज्ञानिक ने एक ऐसे डिवाइस की खोज की जिसका उपयोग करके उच्च विभवान्तर को उत्त्पन्न किया जा सकता है और इसका मान लगभग 10 मिलियन वोल्ट के बराबर होता है इस मान तक के वोल्टेज को   वान – डी ग्राफ जनरेटर की सहायता से उत्त्पन्न किया जा सकता है | वैज्ञानिक वान – डी ग्राफ के नाम पर ही इस डिवाइस को वान – डी ग्राफ जनरेटर के नाम से जाना जाता है |

यह एक प्रकार का इलेक्ट्रो स्टेटिक डिवाइस होता है जिसमें एक मूविंग बेल्ट का उपयोग किया जाता है जो एक खोखले मेटल पर चार्ज को अक्युमुलेट करने का काम करता है |

वान – डी ग्राफ जनरेटर की सरचना

अब हम बात करते है वान – डी ग्राफ जनरेटर की  सरचना किस प्रकार की होती है | इसके अन्दर बैल्ट सिस्टम का उपयोग होता है जो की बहुत ही साधारण सरचना होती है जिसमे निचले रोलर को किसी मोटर या किसी अन्य विधि का उपयोग करके घुमाया जाता है | तथा अन्य उपकरण का उपयोग भी  किया जाता है जैसे की  इसको बनाने के लिए धातु ( Metal ) का कोई एक खोखला गोला लिया जाता है जिसका व्यास लगभग 5 मीटर होता है | इस खोखले गोले को दो स्तम्भ जिनको P1 तथा P2  कहते है तथा इनकी लम्बाई लगभग 15 मीटर होती है के ऊपर रख दिया जाता है |

 इसमें दो कंघियो का उपयोग किया जाता है जिन्हें C1 तथा C2 नाम दिया जाता है जो की धातु की बनी होती है | जिनमे से C1 को फुहार कंघी के नाम से जाना जाता है था C2 को संग्राहक कंघी कहा जाता है | जिनमे से जो कंघी C1 होती है हाई वोल्टेज की बैटरी से जोड़ा जाता है तथा C2 को धातु के गोले के अन्दर जोड़ा जाता है |

इसके अलावा इसमें दो घिर्निया होती है जिन्हें A एव B नाम दिया गया है जिनके ऊपर से बैल्ट मूव करता है | तथा इस पूरे  उपकरण को उच्च दाब पर वायु भरे हुए लोहे के किसी बंद टैंक में रखा जाता है जिससे की किसी भी तरह से आवेश इस पूरे उपकरण से बाहर न निकले और होने वाले आवेश के क्षरण से बचा जा सके | और इस प्रकार वान – डी ग्राफ जनरेटर की सरचना तेयार होती है | अब हम समझते है इसके सिद्धांत के बार में की आखिर इसका सिद्धांत क्या होता है |

वान – डी ग्राफ जनरेटर का सिद्धांत

जब हम वान – डी ग्राफ जनरेटर के सिद्धांत के बारे में बात करते है तो हमें पता चलता है की इसका सिद्धांत मुख्य रूप से दो बातो पर निर्भर करता है पहला यह की किसी भी वैद्युत चालक के द्वारा वायु में वैद्युत विसर्जन उसके नुकीले सिरों के द्वारा ही होता है अर्थात  किसी चालक चालक के नुकीले सिरे पर आवेश का पृष्ठ घनत्व सबसे अधिक होता है | जब भी हवा इस नुकीले सिरे के संपर्क में आति है तो यह हवा आवेशित होती है और यह आवेशित हवा इस अधिक आवेश के पृष्ठ घनत्व वाले सिरे से दूर हटने लगती है |

तथा दूसरा यह की अगर किसी धातु से बने हुए खोखले को आवेश दिया जाए तो इसको दिया गया सभी धनावेश इस धातु से बने खोखले गोले के बाहरी पृष्ठ पर एक सामान रूप से वितरित हो जाता  है | इस प्रकार इन दोनों बिन्दुओ के आधार पर ही इसका सिद्धांत होता है और कार्य करता करता है तथा उच्च विभवान्तर उत्पन्न करता है | तो अब हम इसकी कार्यविधि समझेंगे जिसमे हम देखेंगे की इस सिद्धांत का उपयोग करके किस प्रकार यह इस विभवान्तर को जनरेट करता है जिसका मान लगभग 10 मिलियन वोल्ट के बराबर होता है |

वान – डी ग्राफ जनरेटर की कार्यविधि

अब हम वान – डी ग्राफ जनरेटर की कार्यविधि को समझते है की जब एक बार पूरा डिवाइस बनकर तैयार हो जाता है तो किस प्रकार इसकी कार्यविधि होती है अर्थात किस प्रकार यह आवेश को जनरेट करता है |  जैसा की हमने इसकी सरचना में देखा की कंघी C1 को हाई वोल्टेज यानि की लगभग 10000 वोल्ट से कनेक्ट किया जाता है जिससे की C1 पर आयन उत्त्पन्न होते है | ये आयन प्रतिकर्षण बल की उपस्थिति के कारण बेल्ट पर स्थानांतरित हो जाते है | और चूँकि बेल्ट मूविंग होता है इसलिए इस पर उपस्थित ये आयन कंघी C1 से C2 पर मूव कर  जाते है |

कंघी C2 संग्राहक कंघी होती है इसलिए यह इन आयन को एकत्रित करती है | तथा यह आवेश धातु के खोखले गोलेके बाहरी प्रष्ठ पर चला जाता है | अब प्रिक्रिया बार बार होती ही क्यूंकि बेल्ट मूविंग होता है और यह इस आवेश को C1 से C2 तक लाता है और C2  धातु के खोखले  गोले के बाहरी पृष्ठ पर पहुंचाता है | इस प्रकार यह प्रिकिया बार बार होती है और गोले के बाहरी पृष्ठ पर उच्च विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है |

इस प्रकार इससे उच्च विभवान्तर लगभग 10 मिलियन वोल्ट या इससे अधिक का विभवान्तर उत्पन्न किया जा सकता है | जो की धातु के गोले के बाहरी पृष्ठ पर होता है |   अब इस आवेशित गोले को एक अन्य रोड की सहायता से पृथ्वी से कनेक्ट किया जाता है |

वान – डी ग्राफ जनरेटर का उपयोग

यह एक ऐसा डिवाइस होता है जो उच्च विभवान्तर उत्पन्न करता है इसलिए इसका उपयोग भी ऐसी जगहों पर होता है जहा उच्च विभवान्तर की जरुरत होती है जैसे की –  इसका उपयोग करके उच्च विभवान्तर उत्पन किया जा सकता  है जिसका मान लगभग 10 मिलियन वोल्ट के बराबर होता है  | इसके अलावा इसका उपयोग करके प्रोटोन तथा अल्फा कण आदि को उर्जा देने के लिए भी इसका उपयोग होता है | इसके तीव्र किरणों के उत्पादन केलिए भी इसका उपयोग होता है | आदि कई जगहों पर वान – डी ग्राफ जनरेटर का उपयोग होता है |

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