चोक कुंडली क्या होती है ? सिद्धांत | संरचना एवं कार्यविधि | उपयोग

चोक कुंडली
आज के इस टॉपिक में हम चोक कुंडली के बारे में समझेंगे जिसमे हम देखेंगे की यह कुंडली क्या होती है इसकी संरचना किस प्रकार की होती है तथा इसके बाद हम इसकी कार्यविधि समझेंगे तथा साथ ही साथ हम चोक कुंडली के उपयोग के बारे में भी समझेंगे इन सभी बिन्दुओं पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे तो चलिए समझना शुरू करते है की चोक कुंडली क्या होती है –
चोक कुंडली एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में किया जाता है तथा इसकी सहायता से प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में बिना ऊर्जा का क्षय किये धारा को नियंत्रित किया जाता है इसलिए इसे चोक कुंडली कहा जाता है |
किसी परिपथ में धारा को नियंत्रित करने के लिए प्रतिरोध का उपयोग भी किया जा सकता है लेकिन परिपथ में प्रतिरोध लगाने से परिपथ में उर्जा का नुकसान होता है क्योंकि प्रतिरोध के कारण ऊर्जा का Heat उर्जा ( उष्मीय ऊर्जा ) के रूप में क्षय होता है | इस होने वाले ऊर्जा के नुकसान से बचने के लिए प्रतिरोध की जगह परिपथ में एक कुंडली लगाते है यह कुंडली बहुत कम प्रत्तिरोध उत्पन्न करती है और इसके प्रेरकत्व का मान भी बहुत ज्यादा होता है जिसे स्वप्रेरण गुणांक भी कहा जाता है | अब हम इसके सिद्धांत को समझते है |
चोक कुंडली का सिद्धांत
अगर हम चोक कुंडली के सिद्धांत की बात करें तो इसका सिद्धांत इस प्रकार होता है की किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ के लिए उस परिपथ की औसत शक्ति या फिर उस प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में व्यय उर्जा का मान उस परिपथ में बहने वाली धारा तथा परिपथ के विभवान्तर के वर्ग माध्य मूल तथा इन दोनों के बिच कलांतर की कोज्या के गुणनफल के बराबर होता है अर्थात अगर इसी बात को गणितीय रूप में समझे तो –
माना की किसी प्रत्यावर्ती परिपथ में बहने वाली धारा का मान I है तथा इस परिपथ के लिए विभवान्तर का मान V है तथा दोनों के बिच कोण का मान ɵ है तो कोण की कोज्या का मान Cos ɵ होगा और इस प्रकार प्रत्यावर्ती धारा परिपथ के लिए ओसत शक्ति या व्यय उर्जा का मान इस प्रकार होगा –
P = V × I Cos ɵ
जहा –
P = पॉवर है वाट में
V = वोल्ट में विभवान्तर का मान
I = Ampere में धारा का मान
Cos ɵ = धारा तथा विभवान्तर के बिच कोण की कोज्या
अब हम इसी Concept का उपयोग करके वाटहीन धारा को समझेंगे जो की इस प्रकार होता है –
जब भी किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रेरकत्व या फिर केवल संधारित्र ही लगाया जाता है तो इस स्थति में विभवान्तर और धारा के बिच कलांतर का मान π / 2 होता है –
अर्थात
P = V × I Cos ɵ
P = V × I Cos ( π / 2 )
और हम जानते है की –
Cos ( π / 2 ) = 0
इसलिए
P = 0 वाट
अर्थात हम यह कह सकते है की अगर प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रेरकत्व लगा हो तो इसमें किसी भी तरह से उर्जा का व्यय नहीं होता है |
चोक कुंडली इसी सिद्धांत पर आधारित होती है और इसी सिद्धांत पर वर्क करती है | तो अब हम इसकी संरचना और कार्यविधि के बारे में समझेंगे |
चोक कुंडली की संरचना एवं कार्यविधि
चोक कुंडली को बनाने के लिए एक लोहे का क्रोड़ लिया जाता है तथा एक तांबे का मोटा तार लिया जाता है अब इस क्रोड़ पर इस मोटे तांबे के तार को लपेटा जाता है इसे कुंडलीनुमा आकृति दी जाती है तथा इसको इस प्रकार बनाया जाता है जिससे की इसका स्वप्रेरकत्व ( L ) का मान जिसे स्वप्रेरण गुणांक भी कहते है इसका मान ज्यादा से ज्यादा हो तथा इस कुंडली का प्रतिरोध कम से कम हो |
इस चोक कुंडली के प्रतिरोध का मान कम से कम रखने के लिए ही इसमें तांबे के मोटे तार का उपयोग किया जाता है जिसको क्रोड़ के ऊपर लपेटा जाता है |
तथा स्वप्रेरकत्व का मान जितना अधिक चाहिए होता है क्रोड़ को तांबे के तार के उतना ही अन्दर प्रविष्ट करवाते है | इस प्रकार चोक कुंडली के अन्दर इसके प्रतिरोध को कम एवं स्वप्रेरकत्व का मान ज्यादा से ज्यादा रखा जाता है | अब हम चोक कुंडली के उपयोग के बारे में समझते है |
चोक कुंडली के उपयोग
चोक कुंडली के कुछ महत्वपूर्ण उपयोग होते है जो की इस प्रकार होते है –
1 . चोक कुंडली का उपयोग करके कम शक्ति व्यय के साथ प्रत्यावर्ती धारा को नियंत्रित किया जा सकता है ये इसका एक महत्वपूर्ण उपयोग होता है |
2 . विभवान्तर तथा धारा के बिच कलांतर कम करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है |
3 . इसका उपयोग करके शक्तिहीन धारा के मान को भी बड़ाया जा सकता है |
4 . इसका उपयोग करने से उर्जा के होने वाले नुकसान को नियंत्रित किया जा सकता है |
इस प्रकार चोक कुंडली के बहुत से उपयोग होते है |
Thanks for